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शनि :- बनते काम में रुकावट आना, कर्ज का बोझ होना, शारीरिक कमजोरी, बाल झड़ना, मेहनत का फल नहीं मिलना, उदासीनता, आंखें खराब,पुराना मकान, आयु, मृत्यु, कष्ट, दुःख, अनुचित-व्यवहार,चोरी, कैंसर, चर्म रोग, फ्रैक्चर, कैंसर,पैरालाइसिस,राजनीति और सत्ता, न्याय, खनिज-पदार्थ, कोयला, खेती-बाड़ी, कबाड़ का काम, तेल की मिल, सरसों का काम, भूमि के अंदर से निकलने वाली वस्तुए, पैरों को घसीटने की आदत , घर में आग लग जाना, घर का बिक जाना या उसका कोई हिस्सा टूट जाना ,यह सभी शनि के अधीन है |अंक ज्योतिष में शनि को 8 अंक से जाना जाता है जो मिहनत के कारक है
इनमे से सबंधित किसी भी बात को लाभ में लेने के लिए शनि इत्र का इस्तेमाल करे जिससे शनि देव प्रसन्न होते है| व्यक्ति की मिहनत का मूल्य मिलता है |
शनि मंत्र- ‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः’।
शनि का एकाक्षरी मंत्र- ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’
भगवान शिव को शनिदेव का गुरु माना जाता है, इसलिए शनिदेव अपने गुरु का बहुत सम्मान करते हैं। भगवान शिव की स्तुति करने से आप शनिदेव के प्रकोप से बचे रह सकते हैं और आप पर न्याय के देवता शनिदेव की कृपा होती है। आपको पता होगा कि शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है।
कोई भी देवता या ग्रह आपके लिए शुभ हो, अशुभ हो यानि मारकेश या बाधकेश हो तो उसके उपाए के रूप में उस ग्रह या देवता को नमन किया जाता है , उसके मंत्रो का उच्चारण किया जाता है , उसकी शांति या शुभ फल के लिए पूजन किया जाता है। पूजा की विधि कैसी भी हो उसमे फूलों और सुगंधिओं का ख़ास महत्व होता है। इस कारण से ही हमारे द्वारा सभी ग्रहो के इत्र विधि से बनाये गए है। जिसमे उस ग्रह या देवता के प्रिय फूलों की सुगंध एवं उसके मित्र ग्रहों या देवताओं के प्रिय सुगंधों का मिश्रण बनाया गया है। इसको इस्तेमाल करने से उस देवता या ग्रह का सन्मान होता है और उसके शुभ फल प्रपात होते है।
- आज के समय में बहुत से लोग इन बातों को केवल बहम मात्र बताते है लेकिन यह उनका निजी चुनाब है और हम उनका सन्मान करते है | जहाँ बताई विधिया और कहानियाँ पुरातन ग्रंथो और साधू संतो अदि से ही हम तक पहुचती है और इनमे विशवास करना मेरा निजी मत है | इस विधिओ के प्रयोग से पहले आप अपने गुरु से आज्ञा लेकर शुरू करे | *